विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार सार्स-कोव-2 ने 200 मिलियन से अधिक लोगों को प्रभावित किया है और इससे 5 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है। सार्स-कोव-2 वायरस के म्यूटेंट वैरिएंट (रूपांतरण) में हुई वृद्धि से वैक्सीन की प्रभावशीलता के बारे में चिंताओं को बढ़ावा मिला है। डेल्टा (बी.1.617.2) वैरिएंट भारत में पूर्व प्रभावित स्ट्रेन है। भारत में टीकाकरण कार्यक्रम मुख्य रूप से कोविशील्ड वैक्सीन (सीएचएडीओएक्स1 एनकोव-19) द्वारा संचालित है।
ट्रांसलेशनल हेल्थ साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (टीएचएसटीआई) के नेतृत्व में भारतीय शोधकर्ताओं की एक बहु-संस्थागत टीम ने अप्रैल और मई, 2021 के मध्य सार्स-कोव-2 के संक्रमण के दौरान कोविशील्ड वैक्सीन की वास्तविक-दुनिया प्रभावशीलता का आकलन किया है। इस टीम ने सुरक्षा के तंत्र को समझने के लिए टीका लगे स्वस्थ व्यक्तियों में वेरिएंट के खिलाफ निष्प्रभाविता गतिविधि और सेलुलर प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं का भी आकलन किया है।
“द लैंसेट इंफेक्शियस डिजीज” पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में सार्स-कोव-2 संक्रमण की पुष्टि किए गए 2379 और नियंत्रित किए गए 1981मामलों का तुलनात्मक अध्ययन शामिल हैं। इसमें बताया गया है कि पूरी तरह टीकाकरण किए गए व्यक्तियों में सार्स-कोव-2 संक्रमण के खिलाफ वैक्सीन की प्रभावशीलता 63 प्रतिशत पाई गई, जबकि मध्यम से गंभीर बीमारी के खिलाफ पूर्ण टीकाकरण में वैक्सीन की प्रभावशीलता 81 प्रतिशत पाई गई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि डेल्टा वेरिएंट और वाइल्ड टाइप सार्स-कोव-2 दोनों के खिलाफ स्पाइक विशिष्ट टी-सेल प्रतिक्रियाओं को संरक्षित किया गया था। इस तरह की प्रतिरक्षक सुरक्षा वायरस के वेरिएंट के खिलाफ ह्यूमूरल प्रतिरक्षा कम करने और मध्यम से गंभीर बीमारी की रोकथाम और अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत को कम कर सकती है। यह अध्ययन वास्तविक दुनिया वैक्सीन प्रभावशीलता और टीकाकरण के लिए प्रतिरक्षात्मक प्रतिक्रिया के बारे में व्यापक डेटा उपलब्ध कराता है जिससे नीति के मार्गदर्शन में मदद मिलनी चाहिए।