बूस्टर डोज़ लगवाने के बाद भी कोविड-19 संक्रमण होना मेडिकल साइंस का फेलियर है: रामदेव

बूस्टर डोज़ लगवाने के बाद भी कोविड-19 संक्रमण होना मेडिकल साइंस का फेलियर है: रामदेव
कोविड-19

योग गुरु बाबा रामदेव ने एक बार फिर कोरोना वैक्सीन पर विवादित बयान दिया है। केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम पर उंगली उठाते हुए योगगुरु रामदेव ने कहा है, “कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज़ और बूस्टर डोज़ लगवाने के बाद भी कोरोना वायरस संक्रमण होना मेडिकल साइंस का फेलियर दिखा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “दुनिया वापस नेचुरल मेडिसिंस की ओर लौटेगी।” बकौल रामदेव, “मेडिकल साइंस को तो 200 साल भी नहीं हुए। 50 साल से इन्होंने दुनिया में तबाही मचा रखी है।”

क्या होता है बूस्टर डोज?

कुछ वैक्सीन जिंदगी भर संबंधित बीमारी या वायरस से सुरक्षा देती है लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी भी हैं जिनकी वैक्सीन ताउम्र सुरक्षा नहीं देती। कुछ समय बाद वैक्सीन से पैदा हुई ऐंटीबॉडी कमजोर पड़ने लगती है। उसे फिर मजबूती देने के लिए वैक्सीन की जो डोज दी जाती है, उसे बूस्टर डोज कहते हैं। इसे प्रिकॉशन डोज या ऐहतियाती खुराक भी कहते हैं। कोरोना के मामले में ज्यादातर वैक्सीन के दो डोज लेने वालों को फुली वैक्सीनेटड कहते हैं। इसलिए तीसरे डोज को बूस्टर डोज कहा जाएगा।

क्यों जरूरी है बूस्टर डोज?

कोरोना वैक्सीन को लेकर तमाम स्टडी और रिसर्च बता रहे हैं कि फुली वैक्सीनेटेड (कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज लगवा चुके) लोगों में 6 महीने बाद एंटीबॉडी का स्तर कम होने लगता है। आसान शब्दों में कहें तो कोरोना वैक्सीन की दोनों खुराक लेने के 6 महीने बाद वायरस से सुरक्षा देने वाले एंटीबॉडी कमजोर पड़ने लगते हैं। इससे वैक्सीन लेने के बावजूद संक्रमित होने का जोखिम बढ़ जाता है। इस जोखिम को कम करने के लिए बू्स्टर डोज जरूरी है।