देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपने पैतृक गांव परौंख आ रहे हैं। वो 26 जून को शहर में रहेंगे और जनप्रतिनिधियों, उद्यमियों, चिकित्सकों, समाजसेवियों और पुराने परिचितों से मिलेंगे। राष्ट्रपति प्रेसिडेंशियल ट्रेन से सुरक्षा व्यवस्था के साथ कानपुर पहुंचेंगे। पहली बार कानपुर सेंट्रल पर ये ट्रेन पहुंचेगी, जो कि ऐतिहासिक होगा।
राष्ट्रपति के कानपुर दौरे को लेकर चर्चा इसलिए भी तेज है क्योंकि राष्ट्रपति अपने जन्म स्थान की यात्रा के लिए इस ट्रेन में सफर करेंगे। महामहिम जिस ट्रेन से जाएंगे वह प्रेसिडेंशियल ट्रेन है। मालूम हो कि ऐसा 18 साल बाद हो रहा है जब कोई राष्ट्रपति द्वारा रेल यात्रा की जा रही हो। इससे पहले 18 साल पहले डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने प्रेसीडेंसिशल ट्रेन से यात्रा की थी।
रेल यात्रा को लेकर आम लोगों में बेहद दिलचस्पी है क्योंकि ये ट्रेन बहुत खास होती है। हम आपको बताते हैं कि स्पेशल ट्रेन की क्या खास बात है और इससे पहले किन-किन राष्ट्रपतियों ने रेल यात्रा की।राष्ट्रपति जिस ट्रेन में यात्रा करते हैं उसे प्रेसीडेंशियल सैलून भी कहते हैं जिसमें सिर्फ वही सफर कर सकते हैं। पटरियों पर ही इसे चलाए जाने की वजह से इसे प्रेसीडेंशियल ट्रेन भी कहते हैं। यह आम ट्रेन की श्रेणी भी नहीं आता है। बुलेट प्रूफ विंडो, पब्लिक एड्रेस सिस्टम, हर आधुनिक सुविधा से ये ट्रेन लैस होता है। इसमें दो कोच होते हैं जिनका नंबर 9000 व 9001 होता है।
1956 में बनी इस स्पेशल ट्रेन में विजिटिंग रूम कम डाइनिंग रूम, कॉन्फ्रेंस कम लाउंज रूम, प्रेसिडेंट के लिए विशेष बेडरूम आउट किचन होता है। इसके अलावा सेना के ऑफिसर, सेक्रेटरी, डॉक्टर और अन्य स्टाफ के लिए भी अलग रूम होते है। प्लाज्मा टीवी, जीपीएस और जीपीआरएस सिस्टम, इमर्सैट सैटेलाइट एंटेना, 20-लाइन टेलीफोन एक्सचेंज, एक पब्लिक एड्रेस सिस्टम भी लगा है। ट्रेन को समय-समय पर अत्याधुनिक बनाया जाता है।
प्रेसीडेंशियल सैलून का सबसे पहले विक्टोरिया ऑफ इंडिया ने इस्तेमाल किया था। पहले इसे वाइस रीगल कोच के नाम से जाना जाता था। इसमें पर्सियन कारपेट से लेकर सिंकिंग सोफे तक लगे हुए थे। उस समय खस मैट को कूलिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता था। 1950 में सबसे पहले भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने पहले भारतीय के रूप में इसका इस्तेमाल किया। इसके बाद इस शाही सैलून में कई तरह के परिवर्तन किए गए।