मेरे बचपन की स्मृतियों में एक मास्टर साहब हमेशा मौजूद रहते हैं. उनकी नाबालिग बेटी को अपनी कक्षा के एक छात्र से प्रेम हो गया था. प्रेमी धोखेबाज निकला, उनकी बेटी गर्भवती हो गयी थी. मास्टर साहब ने अपनी बेटी को उस हालत में बड़े प्यार से संभाला. गर्भपात के जरिये उसे अनचाहे गर्भ से मुक्ति दिलायी. साये की तरह उसके साथ रहते थे कि कहीं कोई उस पर गलत टिप्पणी न कर बैठे. आसपास के लोग कभी पीठ पीछे तो कभी सामने मास्टर साहब पर उल्टी सीधी टिप्पणियां करते थे. मगर मास्टर साहब को कभी परेशान नहीं देखा. हां, चुपचाप रहते थे, लोगों से मिलना-जुलना लगभग बंद हो गया था. काम से काम रखते थे. मगर उन्होंने अपनी बेटी को जिस तरह संभाला वह बात आज भी मेरे मन में दर्ज है.
यह बात अब शीशे की तरह साफ है कि जिस तरह वैवाहिक रिश्ते बेहतर और बदतर हो सकते हैं, वैसे ही प्रेम के रिश्ते भी. प्रेम में छली गयी लड़कियों की कहानियां रोज मीडिया में आती हैं. लड़के भी छले जाते हैं. प्रेम का रिश्ता सफल भी हो सकता है, असफल भी. मगर हमारा परिवार प्रेम में असफल लोगों के प्रति बहुत क्रूर होता है. अरेंज मैरिज में अगर कोई ऊंच-नीच होती है तो अमूमन पूरा परिवार लड़की के साथ मजबूत खड़ा रहता है, मगर प्रेम के रिश्ते में, प्रेम विवाह के रिश्ते में अगर गड़बड़ी होती है तो परिवार और समाज उस मुस्तैदी से साथ नहीं देता, जिस मुस्तैदी से मास्टर साहब ने अपनी बेटी का साथ दिया.
प्रेम विवाह में अपने परिवार के खिलाफ जाकर फैसले लेने वाली लड़कियां अक्सर अपने रिश्ते को इसलिए बर्दास्त करती हैं कि वे किस मुंह से अब अपने घरवालों के पास लौटे. क्योंकि घरवाले टोक ही देते हैं, खुद ही तो किया था रिश्ता. यही वजह है कि पारंपरिक विवाह के मुकाबले प्रेम विवाह में रिश्ता खराब होने पर लड़कियां अधिक घुटती हैं. क्रूर दमन का शिकार होती हैं. इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि प्रेम विवाह खराब है, अरेंज मैरिज सही. मेरे हिसाब से इसका एक ही अर्थ है, ज्यादातर मां बाप उस मास्टर साहब की तरह अपनी संतान के प्रति सहृदय नहीं होते.
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