केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने आज टीबी मुक्त भारत बनाने के लिए एकीकृत रणनीति की घोषणा की और कहा कि जैव प्रौद्योगिकी विभाग, जिसने विश्व को कोविड के विरुद्ध पहला डीएनए टीका दिया,
वह अब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की 2025 तक ‘ टीबी मुक्त भारत ‘ की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए टीबी रोग के उन्मूलन के खिलाफ इस एकीकृत समग्र स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए अब आगे बढ़ने जा रहा है।
वाराणसी में एक विश्व टीबी शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान से प्रेरित होकर,डॉ. जितेन्द्र सिंह ने टीबी से पीड़ित रोगियों से अलग किए गए माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (एमटीबी) के 182 उपभेदों के सम्पूर्ण जीनोम सिक्वेंसिंग के सफल समापन के साथ ही भारतीय क्षय रोग जीनोमिक सर्विलांस कंसोर्टियम (आईएनटीजीएस) के पायलट चरण की शुरुआत और डीबीटी-इनस्टेम, बेंगलुरु में एक नई ब्लड बैग तकनीक के विकास की घोषणा की। डॉ.जितेंद्र सिंह जैव-नवीन प्रौद्योगिकी नवाचार पर मीडिया के साथ बातचीत कर रहे थे।
टीबी के परिणामों में सुधार के लिए (क) टीबी रोगी के जीवन की गुणवत्ता (क्वालिटी ऑफ़ लाइफ-क्यूओएल) में सुधार के लिए आयुष हस्तक्षेप, और (ख) जीनोमिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के माध्यम से संग्रहित रक्त की गुणवत्ता और शेल्फ जीवन को बढ़ाने के लिए अनूठी रक्त बैग प्रौद्योगिकी से दवा प्रतिरोध के मानचित्रण एवं संग्रहित रक्त गुणवत्ता और शेल्फ जीवन को बढ़ाने के लिए अनूठी रक्त बैग प्रौद्योगिकी जैसी नई पहलों पर प्रस्तुतिकरण किए गए थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि टीबी रोग के कारण पड़ने वाले गहरे सामाजिक और आर्थिक प्रभाव को देखते हुए भारत सरकार ने 2025 तक ‘टीबी मुक्त भारत’ के लिए उच्च प्राथमिकता दी है। जैव प्रौद्योगिकी टीबी के उन्मूलन के विरुद्ध एकीकृत समग्र स्वास्थ्य देखभाल दृष्टिकोण में एक बड़ी भूमिका निभाने जा रही है। टीबी उन्मूलन के लिए डेटा-संचालित अनुसंधान-जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक व्यापक कार्यक्रम “डेयर 2 इरैड टीबी” को 2022 में विश्व टीबी दिवस पर प्रारम्भ किया गया था।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के नेतृत्व में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के बीच एक संयुक्त पहल है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर), वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) तथा अन्य अनुसन्धान एवं विकास संस्थान इस समूह का एक अंग हैं और इसका उद्देश्य टीबी के 32500 उपभेदों का संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (डब्ल्यूजीएस) करना है ।
जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. राजेश एस. गोखले ने कहा कि आईएनटीजीएस को अत्यधिक सफल भारतीय एसएआरएस–सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (आईएनएसएसीओजी) के समान ही तैयार किया गया है ।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि यह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) की जैविक विशेषताओं और संचरण, उपचार और रोग की गंभीरता पर म्यूटेशन के प्रभाव को पूरी तरह से समझने के लिए इस तरह की पहली अखिल भारतीय पहल होगी। उन्होंने कहा कि यह कदम भविष्य में टीबी के निदान और निगरानी के लिए डब्ल्यूजीएस जैसी आधुनिक तकनीक के उपयोग की नींव बन सकता है । उन्होंने उल्लेख किया कि माननीय प्रधानमंत्री ने हाल ही में 24 मार्च 2023 को विश्व टीबी दिवस के अवसर पर वाराणसी में एक विश्व टीबी शिखर सम्मेलन ( वन वर्ल्ड टीबी समिट) को संबोधित किया था, जहां कई पहलें शुरू की गई थीं और विभाग के इस दिशा में प्रयास ‘2025 तक टीबी मुक्त भारत’ के दृष्टिकोण के अनुरूप हैं ।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने उल्लेख किया कि समग्र स्वास्थ्य सेवा के प्रावधान के लिए चिकित्सा की विभिन्न प्रणालियों के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण का पालन करने पर सरकार का ध्यान केंद्रित रहा है। उन्होंने कहा कि टीबी के उपचार ( एंटी टीबी थेरेपी–एटीटी) के सहायक के रूप में आयुर्वेद हस्तक्षेप पर उच्च प्रभाव अनुसंधान अध्ययन आयोजित करने के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार, कैशेक्सिया के प्रबंधन, एटीटी और हेपेटो हेतु सुरक्षा के लिए जैव-संवर्धन के उद्देश्य आयुष मंत्रालय और जैव प्रौद्योगिकी विभाग के बीच हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के अंतर्गत योजना बनाई जा रही है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने टिप्पणी की कि सरकार भी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास और नवाचार का जोरदार समर्थन कर रही है
उन्होंने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान, स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन संस्थान ( डीबीटी-इनस्टेम ) में वैज्ञानिकों द्वारा एक अनूठे भारतीय रक्त बैग (ब्लड बैग) प्रौद्योगिकी के विकास की घोषणा की। यह नैनोफाइबर शीट पर आधारित है जो रक्त से हानि पहुंचाने वाले घटकों को पकड़ सकता है ताकि संग्रहीत रक्त की गुणवत्ता और जीवनकाल को बढ़ाया जा सके और एक स्पिन- ऑफ स्टार्टअप कंपनी कैप्चर बायो प्राइवेट लिमिटेड के माध्यम से इस तकनीक का व्यावसायीकरण करने के प्रयास किए जा रहे हैं ।