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कुर्सी का खतरा देख लगाई इमरजेंसी.. संविधान हत्या दिवस पर गृहमंत्री अमित शाह का बड़ा बयान, कांग्रेस पर कसा तंज

उमाकांत त्रिपाठी।आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में ‘संविधान हत्या दिवस-2025’ कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने ‘The Emergency Diaries – Years that Forged a Leader’ का अनावरण किया. अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इसे संविधान हत्या दिवस नाम दिया, ताकि आने वाली पीढ़ी को भी यह याद रहे. संविधान हत्या दिवस थोड़ा कठोर और निर्मम शब्द है. इस पर विचार भी किया गया लेकिन इतने बुरे कालखंड की याद कठोर शब्द से ही होना चाहिए. तब ये निर्णय लिया गया. उन्होंने कहा,कि- 12 जून को गुजरात में जनता मोर्चे का प्रयोग सफल हुआ था और कांग्रेस की सत्ता का अंत होकर जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इससे घबराकर 25 तारीख को आपातकाल लगाया गया. कारण बताया गया कि राष्ट्र की सुरक्षा खतरे में है लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि राष्ट्र की सुरक्षा को कुछ नहीं हुआ था, उनकी कुर्सी खतरे में थी.

गृह मंत्री ने बताया कि- पीएम मोदी 24/25 साल की उम्र में कार्यकर्ता के नाते नानाजी देशमुख के मार्गदर्शन में गुजरात में आपातकाल में कार्यरत रहे. वो भूमिगत रहकर, साधु, सरदार जी, हिप्पी जैसे भेष में रहकर काम करते रहे. मैं देश के युवाओं से अपील करता हूं कि वो एक बार आप इस पुस्तक को जरूर पढ़ें. ताकि आपको पता चलेगा कि युवा काल में देश के लिए संघर्ष करने वाला एक 24/25 साल का युवा आज देश का प्रधानमंत्री है.

कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को खारिज किया था
उन्होंने कहा कि 12 जून को इलाहाबाद कोर्ट ने इंदिरा गांधी के चुनाव को खारिज किया और कहा 6 साल चुनाव नहीं लड़ सकतीं. उसी दिन गुजरात में जनता मोर्चा का सफल आयोजन हुआ और जिसने गुजरात से कांग्रेस को उखाड़ फेंका था.एक रात में 10 हजार राजनीतिक कार्यकर्ताओं को पहले ही दिन रात में जेल में डाल दिया गया था.

देश की आत्मा को गूंगा करके रख दिया गया था
गृह मंत्री ने कहा कि- आज हम आजादी के बाद के भारत के इतिहास के एक काले अध्याय को याद करने के लिए एकत्रित हुए हैं. जिस तरह से आपातकाल में देश को जेलखाना बनाकर रख दिया गया था, देश की आत्मा को गूंगा करके रख दिया गया था, न्यायालय के कान को बहरा करके रख दिया गया था, लिखने वालों की कलम से स्याही ही निकाल दी गई थी… उस पूरे कालखंड का वर्णन कठोर शब्दों के साथ ही करना चाहिए, तभी युवा पीढ़ी को मालूम पड़ेगा कि क्या हुआ था.

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