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स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जयंती पर कार्यक्रम, पीएम मोदी ने बताई देश और समाज में विवेकानंद की भूमिका

उमाकांत त्रिपाठी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती की 200वीं जन्मजयंती पर गुजरात के मोरबी में आयोजित कार्यक्रम में वर्चुअली शामिल हुए। PM ने 10 मिनट की स्पीच में स्वामी दयानंद सरस्वती के जीवन, देश और समाज में उनकी भूमिका पर बात की। प्रधानमंत्री ने कहा- अंग्रेज हमारी सामाजिक कुरीतियों के जरिए हमें नीचा दिखाते थे। सामाजिक बदलाव का हवाला देकर कुछ लोग इसका समर्थन भी करते थे। लेकिन स्वामी जी ने इन सभी साजिशों को कभी पूरा नहीं होने दिया। PM ने कहा- महर्षि दयानन्द ने अपने दौर में महिलाओं के अधिकारों और उनकी भागीदारी की बात की थी। नारी शक्ति वंदन अधिनियम और बेटियों को आगे बढ़ाने के हमारे प्रयास उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।

प्रधानमंत्री के भाषण की 5 बड़ी बातें

1. मैं मन से हृदय से आप सब के बीच ही हूं
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा- देश स्वामी दयानंद सरस्वती जी की 200वीं जन्मजयंती मना रहा है। मेरी इच्छा थी कि मैं खुद स्वामी जी की जन्मभूमि टंकारा पहुंचता, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया। मैं मन से हृदय से आप सब के बीच ही हूं।

2. मेरे जीवन में उनका एक अलग प्रभाव है
PM ने कहा- मेरा सौभाग्य रहा कि स्वामी जी की जन्मभूमि गुजरात में मुझे जन्म मिला। उनकी कर्मभूमि हरियाणा को भी मुझे जानने, समझने और कार्य करने का अवसर मिला। मेरे जीवन में उनका एक अलग प्रभाव है, उनकी एक अलग भूमिका है। मैं आज इस अवसर पर स्वामी जी को नमन करता हूं।

3. अंग्रेजी राज को सही ठहराने वालों को उन्होंने बेनकाब किया
हमारी सामाजिक कुरीतियों को मोहरा बनाकर अंग्रेजी हुकूमत हमें नीचा दिखाने की कोशिश करती थी। सामाजिक बदलाव का हवाला देकर तब कुछ लोगों द्वारा अंग्रेजी राज को सही ठहराया जाता था। ऐसे कालखंड में स्वामी दयानंद सरस्वती जी के आने से इन सब साजिशों को गहरा धक्का लगा।

4. स्वामी जी राष्ट्र चेतना के ऋषि भी थे
मोदी बोले- स्वामी दयानंद सरस्वती जी केवल एक वैदिक ऋषि ही नहीं थे, वो एक राष्ट्र चेतना के ऋषि भी थे। स्वामी दयानंद जी के जन्म के 200 वर्ष का ये पड़ाव उस समय आया है, जब भारत अपने अमृतकाल के शुरुआती समय में है।

5. वे भारत के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखते थे
मोदी बोले- स्वामी दयानंद जी भारत के उज्ज्वल भविष्य का सपना देखने वाले संत थे। स्वामी जी के मन में भारत को लेकर जो विश्वास था, अमृतकाल में हमें उसी विश्वास को अपने आत्मविश्वास में बदलना होगा।

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