केंद्र ने भारतीय खाद्य निगम-एफसीआई को बिना किसी मूल्य कटौती के 18 प्रतिशत तक सूखे या मुरझाए हुए और टूटे हुए अनाज के बारे में आम तौर पर पूछे जाने वाले प्रश्नों-एफएक्यू में छूट देकर केंद्रीय पूल के लिए केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ सहित पंजाब और हरियाणा में गेहूं की खरीद की अनुमति देने का निर्णय लिया है। इस निर्णय से गेहूं की बिक्री के बारे में किसानों की कठिनाइयां कम होंगी और संकट से बच सकेंगे।
पंजाब और हरियाणा राज्य सरकारों ने खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) को पत्र लिखकर रबी विपणन सत्र-आरएमएस 2022-23 के लिए गेहूं के समान विनिर्देशों में छूट देने की मांग की है। वर्तमान में सूखे या मुरझाए हुए और टूटे हुए अनाज की सीमा 6 प्रतिशत है। जब कि इन राज्यों ने 20 प्रतिशत तक की छूट मांगी थी।
पंजाब और हरियाणा में मंडियों से बहुत विशाल मात्रा में नमूने एकत्र करने के लिए अप्रैल-मई, 2022 के दौरान केंद्रीय दलों को प्रतिनियुक्त किया गया था और इनका विश्लेषण एफसीआई की प्रयोगशालाओं में किया गया था। जांच के बाद परिणामों ने अलग-अलग प्रतिशत और एफएक्यू मानदंडों से हट कर सूखे या मुरझाए हुए और टूटे हुए अनाज की उपस्थिति का संकेत मिले थे।
अनाज का सूखे या मुरझाए हुए और टूटना एक प्राकृतिक घटना है जो मार्च के महीने में देश के उत्तरी भाग में अत्यधिक गर्मी की लहर आने के परिणामस्वरूप सामने आई है। ये प्रतिकूल मौसम की स्थिति किसानों के नियंत्रण से बाहर हैं और इसलिए, ऐसी प्राकृतिक घटना के लिए उन्हें दंडित नहीं किया जाना चाहिए। इसके अनुसार, किसानों की कठिनाई को कम करने के लिए सरकार द्वारा अनाज की बनावट में बदलाव पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाना चाहिए। इस प्रकार, आम तौर से पूछे जाने वाले प्रश्नों के मानदंडों में उपयुक्त छूट किसानों के हितों की रक्षा करेगी और खाद्यान्न की उचित खरीद और वितरण को बढ़ावा देगी।
आरएमएस 2021-22 के दौरान गेहूं का उत्पादन 1095 लाख मीट्रिक टन-एलएमटी और 433 एलएमटी गेहूं की खरीद की गई थी। आरएमएस 2022-23 के दौरान, 1113 एलएमटी गेहूं के उत्पादन का अनुमान लगाया गया था। लेकिन गर्मियों की शुरुआत (मार्च 2022 के अंत तक) के परिणामस्वरूप पंजाब और हरियाणा में अनाज की बनावट में परिवर्तन हुआ और अनाज के सूखने या मुरझानेए और टूटना सामने आया और प्रति एकड़ गेहूं की उपज में गिरावट आई। इसके बाद अखिल भारतीय स्तर पर गेहूं की खरीद के लक्ष्य को संशोधित कर 195 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया है।
इसी तरह का निर्णय 2020-21 में भी लिया गया था, जब किसानों के हितों की रक्षा के लिए आम तौर पर पूछे जाने वाले प्रश्नों के मानदंडों में 16 प्रतिशत तक की छूट दी गई थी।