उमाकांत त्रिपाठी। भारतीय विदेश मंत्री नौ साल में पहली बार पाकिस्तान जा रहे हैं. इस्लामाबाद में 15-16 अक्तूबर को शंघाई सहयोग संगठन यानी एससीओ की बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. भारतीय विदेश मंत्री का यह दौरा काफी अहम माना जा रहा है. भारत-पाकिस्तान के बीच कायम तनाव के बीच विदेश मंत्री पाकिस्तान जा रहे हैं तो निश्चित है कि बैठक काफी अहम होगी.
इसी बहाने आइए जान लेते हैं कि आखिर क्या है एससीओ समिट, जिसके कारण विदेश मंत्री को पाकिस्तान जाना पड़ रहा है. इसका सदस्य होने से भारत को क्या फायदा मिलता है और इस बार इसका एजेंडा क्या है? इस संगठन का गठन कितना सफल रहा है?
2001 में हुई थी स्थापना
वास्तव में शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना साल 2001 में चीन और सोवियत संघ का हिस्सा रहे चार मध्य एशियाई देशों ने की थी. इनमें कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, किर्गिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं. इसी नींव पड़ी थी साल 1996 में रूस, चीन और इन देशों के बीच सीमा को लेकर हुए एक समझौते से. इस समझौते को शंघाई फाइव के नाम से जाना जाता है. चीन और रूस शुरू से इसके सदस्य हैं. बाद में चीन के सुझाव देने पर क्षेत्र के अलग-अलग देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिए इस संगठन का विस्तार किया गया. भारत साल 2005 से इस संगठन का सदस्य था पर 2017 में इसका स्थायी सदस्य बन गया. इसी साल पाकिस्तान ने भी इसकी सदस्यता ले ली. साल 2017 में ईरान भी एससीओ का सदस्य बन गया. वर्तमान में एससीओ के सदस्य देशों में पूरी दुनिया की करीब 40 फीसदी आबादी निवास करती है. पूरी दुनिया की जीडीपी में इन देशों की 20 फीसद हिस्सेदारी है. यही नहीं, दुनिया भर में मौजूद तेल रिजर्व का 20 फीसद हिस्सा भी इन्हीं देशों में है.
एससीओ में है ताकतवर देश
ब्रिटेन स्थित इंटरनेशन इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के निजेल गॉल्ड डेविस के हवाले से बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एससीओ में काफी बड़े और ताकतवर देश हैं. इस लिहाज से यह संगठन अपना प्रभाव दुनिया पर नहीं छोड़ पाया है. इसके खाते में अब तक कोई बड़ी उपलब्धि नहीं दर्ज है. इसका सबसे बड़ा कारण यह कि इस संगठन के सदस्य देशों में आपसी विश्वास की कमी है. भले ही सदस्य देशों में व्यापार और सुरक्षा बढ़ाने के लिए एससीओ की भूमिका बढ़ाने की बात कही गई है पर असलियत में इसके लिए संबंधित देशों के बीच सहयोग,अपनी क्षमता को साझा करने और उपलब्धि के लिए विश्वास ही नहीं है. इसीलिए दूसरे देश या देशों के संगठन इसको लेकर चिंतित नहीं होते. उनका कहना है कि आज भले ही भारत और पाकिस्तान एससीओ के सदस्य हैं पर दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चला ही आ रहा है. भारत और चीन के बीच भी सीमा का विवाद है. ईरान और पाकिस्तान भी आमने-सामने रह चुके हैं. ऐसे में एससीओ के देश आपस में सहयोग नहीं बढ़ा रहे, बल्कि सदस्यों की संख्या बढ़ाने में लगे हैं, जिससे इस संगठन की अहमियत बताई जा सके.