चुनाव आयोग ने 86 और ‘अस्तित्वहीन’ राजनीतिक दलों को सूची से हटाने का किया फैसला

चुनाव आयोग ने 86 और ‘अस्तित्वहीन’ राजनीतिक दलों को सूची से हटाने का किया फैसला
चुनाव आयोग

चुनाव आयोग ने मंगलवार को 86 और ‘अस्तित्वहीन’ पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) को अपनी सूची से हटाने का आदेश दिया।

इसके साथ ही चुनावी नियमों का पालन करने में विफल रहने वाले ऐसे दलों की संख्या अब 537 हो गई है। वहीं, ‘निष्क्रिय’ घोषित किए गए 253 आरयूपीपी किसी भी तरह का लाभ उठाने के पात्र नहीं होंगे।

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29क के अंतर्गत सांविधिक अपेक्षाओं के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने नाम, प्रधान कार्यालय, पदाधिकारियों, पते, पैन में किसी भी प्रकार के बदलाव की संसूचना आयोग को बिना किसी विलंब के देनी होती है। 86 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (आरयूपीपी) या तो संबंधित राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के संबंधित मुख्य निर्वाचन अधिकारियों द्वारा किए गए प्रत्यक्ष सत्यापन के बाद या डाक प्राधिकारी से संबंधित पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) के पंजीकृत पते पर भेजे गए अवितरित पत्रों/नोटिसों की रिपोर्ट के आधार पर निष्क्रिय पाए गए हैं। यह स्मरण दिलाया जाता है कि भारत निर्वाचन आयोग ने आदेश दिनांक 25 मई, 2022 और 20 जून, 2022 के जरिए क्रमशः 87 आरयूपीपी और 111 आरयूपीपी को सूची से हटा दिया, इस तरह सूची से हटाए गए आरयूपीपी की संख्या कुल मिलाकर 284 हो गई थी।

अनुपालन न करने वाले 253 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (आरयूपीपी) के विरुद्ध यह निर्णय सात राज्यों बिहार, दिल्ली, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों से प्राप्त रिपोर्टों के आधार पर लिया गया है। ये 253 आरयूपीपी निष्क्रिय घोषित किए गए हैं क्योंकि उन्हें भेजे गए पत्र/नोटिस का उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया है और न तो किसी राज्य के विधानसभा का आम चुनाव और न ही वर्ष 2014 एवं 2019 में संसदीय चुनाव लड़ा है। ये पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल वर्ष 2015 से 16 से अधिक अनुपालन कदमों के संबंध में सांविधिक अपेक्षाओं का पालन करने में असफल रहे हैं और उन सब की यह चूक लगातार जारी है।

यह भी नोट किया जाता है कि उपरोक्त 253 दलों में से, 66 पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल (आरयूपीपी) ने वास्तव में चुनाव चिन्ह आदेश 1968 के पैरा 10बी के अनुसार एक समान चुनाव चिन्ह के लिए आवेदन किया था और संबंधित निर्वाचनों को नहीं लड़ा था। यह ध्यान देने योग्य है कि एक राज्य के उक्त विधानसभा निर्वाचन के संबंध में कुल उम्मीदवारों में से कम से कम 5 प्रतिशत उम्मीदवार को रखने के लिए एक वचनबंध के आधार पर आरयूपीपी को एकसमान (कॉमन) चुनाव चिन्ह का विशेषाधिकार दिया जाता है। ऐसी पार्टियों द्वारा निर्वाचन लड़े बिना अनुमत्य पात्रताओं का और निर्वाचन पूर्व उपलब्ध राजनीतिक सुविधाओं (छूट) का लाभ उठाने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है। यह वास्तव में निर्वाचन लड़ने वाले राजनीतिक दलों की भीड़ को भी बढ़ाता है और मतदाताओं के लिए भ्रमित करने वाली स्थिति भी पैदा करता है।

आयोग यह नोट करता है कि राजनीतिक दलों के पंजीकरण का प्राथमिक उद्देश्य धारा 29क में निहित है जिसमें किसी संगठन (एसोसिएशन) को एक राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत होने के बाद मिलने वाले विशेषाधिकारों और लाभों को सूचीबद्ध किया गया है और ऐसे सभी लाभ और विशेषाधिकार सीधे तौर पर निर्वाचन प्रक्रिया में उक्त भागीदार से संबंधित हैं। तदनुसार, पंजीकरण की शर्त के लिए आयोग द्वारा जारी किए गए राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए 13(ii)(ई) दिशानिर्देशों में निम्नानुसार व्याख्या है:

“घोषणा की जाती है कि पार्टी को अपने पंजीकरण के पांच साल के भीतर निर्वाचन आयोग द्वारा संचालित चुनाव लड़ना चाहिए और उसके बाद उसे चुनाव लड़ना जारी रखना चाहिए। (यदि पार्टी लगातार छह साल तक चुनाव नहीं लड़ती है, तो पार्टी को पंजीकृत पार्टियों की सूची से हटा दिया जाएगा)।”

आयोग इस बात से अवगत है कि गठन (वर्ष) की शर्तों का अनुपालन, जो अधिदेशित और स्व-स्वीकृत प्रावधानों का एक संयोजन है, वित्तीय अनुशासन, औचित्य, सार्वजनिक उत्तरदायित्व, पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अनिवार्य शर्त है। अनुपालन, एक पारदर्शी तंत्र के निर्माण खंड के रूप में काम करते हैं ताकि मतदाताओं को संसूचित विकल्प निर्मित करने के लिए अपेक्षित राजनीतिक दलों के मामलों के बारे में सूचित किया जा सके। अपेक्षित अनुपालन के अभाव में, मतदाता और निर्वाचन आयोग अंधेरे में रह जाते हैं। इसके अलावा, इन सभी उल्लिखित नियामक अपेक्षाओं का आयोग के स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी निर्वाचन कराने के संवैधानिक अधिदेश पर सीधा असर पड़ता है।