पश्चिम बंगाल मे त्रिकोणीय संघर्ष के आसार, पार्टियों के बीच जोर -आजमाईश जारी

पश्चिम बंगाल मे त्रिकोणीय संघर्ष के आसार, पार्टियों के बीच जोर -आजमाईश जारी

विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी और बीजेपी आमने-सामने है. टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को अपनी कुर्सी बचाने की चुनौती है, तो बीजेपी बंगाल में पहली बार कमल खिलाने का लक्ष्य रखा है. इस बीच  कांग्रेस और लेफ्ट ने चुनाव में गठबंधन का एलान कर दिया है. बीजेपी और टीएमसी के मुकाबले के बीच कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन से विधानसभा चुनाव में अब मुकाबला त्रिकोणीय होने जा रहा है. यह मुकाबला टीएमसी, बीजेपी और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के बीच होना लगभग तय है. साल 2011 में ममता बनर्जी ने लेफ्ट को सत्ताच्युत किया था और 34 वर्षों के लेफ्ट के लाल किले को ध्वस्त कर बंगाल में ‘मां, माटी, मानुष’ की सरकार बनाई थी, हालांकि उस समय कांग्रेस और टीएमसी साथ में थे और उनका मुकाबला लेफ्ट के साथ था, लेकिन 2011 के चुनाव के बाद लेफ्ट और कांग्रेस लगातार हाशिये पर हैं और बंगाल में बीजेपी का उत्थान हो रहा है. बीजेपी टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट के लिए चुनौती बन गई है

ऐसा नहीं है कि प्रस्तावित विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस और लेफ्ट के बीच गठबंधन हो रहा है. साल 2011 के विधानसभा चुनाव के बाद टीएमसी से तकरार के बाद कांग्रेस ने टीएमसी से अपना रास्ता अलग कर लिया था और लेफ्ट-कांग्रेस साल 2016 के चुनाव में एक साथ आये थे. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में कुल 293 सीटों में से तृणमूल कांग्रेस 211 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी बनी थी और ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल में फिर से टीएमसी की सरकार बनी थी. कांग्रेस को 44 सीटें,लेफ्ट को 32 सीटें और बीजेपी को 3 सीटों पर जीत मिली थी. टीएमसी को तकरीबन 45 फीसद मत मिले. लेफ्ट को 25 फीसद, कांग्रेस को 12 फीसद और बीजेपी को 10 फीसद मत मिले, लेकिन लेफ्ट का मत प्रतिशत अधिक होने के बावजूद कांग्रेस की सीटें अधिक थी और विधानसभा में विपक्ष के नेता कांग्रेस विधायक अब्दुल मन्नान बने यानी कांग्रेस को विधानसभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी का दर्जा मिला.

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव के परिणाम भले ही बीजेपी के पक्ष में रहे हों, लेकिन चिंता जितनी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी को अपनी कुर्सी बचाने की है. उतनी ही चिंता बीजेपी को फिर से लोकसभा के प्रदर्शन को दोहराने की है और दोनों ही पार्टी ‘साम, दाम, दंड, भेद’ सभी तरह की राजनीति चल रही है. एक दूसरे के नेताओं को तोड़ने और विभिन्न समुदाय को वोटों को लुभाने की कोशिश में जुटी है. बीजेपी कोशिश कर रही है कि किस तरह से राज्य में टीएमसी विरोधी भावना को हवा दी जाए और वह लगातार भ्रष्टाचार, कुशासन और कानून-व्यवस्था का मुद्दा उठा रही है और केंद्र सरकार की नीतियों को जनता के समक्ष रख रही है. वहीं, ममता बनर्जी भी केंद्र सरकार की नीतियों को निशाना बना रही हैं और राज्य में अपने विकास को एजेंडा के रूप में पेश कर रही है. दोनों ही पार्टियां हिंदुओं और मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश कर रही है, हालांकि मुस्लिम और हिंदू वोटों में कांग्रेस और लेफ्ट की भी पैठ है, लेकिन वर्तमान राजनीतिक परिस्थिति में ये वोट उनके साथ कितना जाएगा. इसे लेकर शंका है.

बिहार चुनाव में लेफ्ट पार्टियों को मिली सफलता के बाद भाकपा (माले) ने बंगाल में बीजेपी के खिलाफ टीएमसी सहित सभी पार्टियों को एकजुट होने का आह्वान किया था, लेकिन लेफ्ट पार्टियों से लेकर कांग्रेस और टीएमसी सभी ने इसे खारिज कर दिया. पिछले विधानसभा चुनाव में लेफ्ट और कांग्रेस में गठबंधन अवश्य हुआ था, लेकिन जमीनी स्तर पर यह नहीं पहुंच पाया था. इस कारण लेफ्ट के वोट कांग्रेस को तो शिफ्ट हुए थे, लेकिन कांग्रेस के वोट लेफ्ट को नहीं शिफ्ट हुए थे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि लेफ्ट का वोट बीजेपी को मिला था और राज्य में बीजेपी के उत्थान का एक यह बहुत बड़ा कारण था, क्योंकि कांग्रेस की तुलना में बीजेपी मजबूत स्थिति में थी और लेफ्ट के कार्यकर्ताओं को टीएमसी से बचने के लिए सुरक्षा की जरूरत थी. अब जब राज्य में फिर से बीजेपी का उत्थान दिखाई दे रहा है कि क्या लेफ्ट के वोट फिर से बीजेपी को शिफ्ट होंगे या ये वोट लेफ्ट और कांग्रेस के खाते में जाएंगे ? यह तो विधानसभा चुनाव परिणाम ही बतायेगा, लेकिन इतना तय है कि चुनाव में मुकाबला त्रिकोणीय होगा और दिलचस्प होगा.