उमाकांत त्रिपाठी।
पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने शुक्रवार 12 जनवरी को सीएम ममता बनर्जी को आड़े हाथ लिया। न्यूज एजेंसी के मुताबिक, शुभेंदु ने कहा कि ममता बनर्जी को वन नेशन, वन इलेक्शन के बारे में चिंता करना बंद कर देनी चाहिए। यह उनका काम नहीं है।
शुभेंदु ने आगे कहा कि ममता प्राइवेट लिमिटेड पार्टी की मालकिन हैं। उनका काम रोहिंग्याओं को पश्चिम बंगाल में घुसपैठ करने और लूटपाट करने देना है। देश के बारे में सोचने के लिए पीएम मोदी मौजूद हैं। पीएम वही करेंगे जो देश चाहता है, अबकी बार 400 पार।
शुभेंदु का यह बयान ममता के गुरुवार (11 जनवरी) को दिए उस बयान पर आया है कि जिसमें उन्होंने वन नेशन, वन इलेक्शन से असहमति जताई है। ममता ने कहा था कि संवैधानिक मुद्दे पर वह नेशन की परिभाषा से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं।
वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली कमेटी विचार कर रही है। कमेटी ने इस मुद्दे पर सभी राज्यों से सुझाव मांगे हैं। इसी के जवाब में ममता ने कमेटी को लेटर लिखकर अपनी परेशानियों का जिक्र किया है।
ममता ने पैनल को लेटर लिखा, बोलीं- वैचारिक मतभेद
ममता ने लेटर में लिखा है कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व पर वन नेशन का कॉन्सेप्ट समझ आता है, लेकिन संवैधानिक मसलों पर इसकी व्याख्या कैसे की जाएगी, इस पर मुझे संदेह है।
हमारे देश में हर राज्य की विधानसभा चुनावों और आम चुनावों के चक्र में इतना अंतर है तो, इसे एक साथ कैसे लाएंगे। जब तक यह अवधारणा कहां से आई इसकी पहेली हल नहीं हो जाती, तब तक वन नेशन पर सहमति जता पाना मुश्किल है।
प्रस्ताव में बुनियादी वैचारिक कठिनाइयां
ममता ने लिखा कि साल 1952 में केंद्र और राज्यों के चुनाव एक साथ कराए गए थे। कुछ सालों तक यह प्रथा चली। बाद में यह टूट गई। मुझे खेद है मैं आपके द्वारा तैयार किए गए वन नेशन-वन इलेक्शन के कॉन्सेप्ट से सहमत नहीं हो सकती।
उन्होंने कहा कि समिति के प्रस्ताव से सहमत होने में कई बुनियादी वैचारिक कठिनाइयां हैं और इसकी अवधारणा स्पष्ट नहीं है। जो राज्य आम चुनाव के साथ इलेक्शन नहीं कराना चाहते।
उन्हें केवल समानता के लिए समय से पहले चुनाव के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। इससे जनता का विश्वास टूटेगा, जिन्होंने पहले ही एक तय समय के लिए अपने विधानसभा उम्मीदवार को चुन लिया है।
क्या है वन नेशन वन इलेक्शन
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे।
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।