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क्या सबूत हो सकती है पत्नी की कॉल रिकॉर्डिंग, तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दिया अहम फैसला

उमाकांत त्रिपाठी।सुप्रीम कोर्ट ने एक पति की उस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें उसने अपनी पत्नी की फोन पर हुई बातचीत को लंबित तलाक के मामले में सबूत के तौर पर इस्तेमाल करनी की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि- पति के कृत्य किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करते हैं। बता दें कि पति ने किसी बिना पूर्व सूचना के ही अपनी पत्नी की फोन पर हुई बातचीत को रिकॉर्ड किया था।

उच्च न्यायालय के फैसले को SC ने पलटा
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के शीर्ष न्यायालय ने पंजाब एवं हरियाणा के उच्च न्यायालय के उस फैसले को भी पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि पति को अपनी पत्नी की अनुमति के बिना जानकारी रिकॉर्ड की गई बातचीत को सबूत के तौर पर नहीं पेश किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा था कि तलाक की कार्यवाही में उसकी निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होगा।

जानिए क्या है पूरा मामला?
पूरा मामले एक दंपती के तलाक से जुड़ा हुआ है। दंपती का विवाह 20 फरवरी 2009 को हुआ था और 11 मई 2011 को उनकी एक बेटी हुई थी। हालांकि, चल रहे वैवाहिक विवादों के कारण पति ने 7 जुलाई 2017 को पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए अर्जी दी।
इसके बाद 3 अप्रैल 2018 को उसने तलाक की याचिका में संशोधन किया और 7 दिसंबर 2018 को जांच के लिए अपना हलफनामा प्रस्तुत किया।

पति ने मांगी रिकॉर्ड की गई बातों को प्रस्तुत करने की अनुमति
बाद में 9 जुलाई 2019 को पति ने मोबाइल फोन के मेमोरी कार्ड/ चिप, एक कॉम्पैक्ट डिस्क और रिकॉर्ड की गई बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट जैसे साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति मांगी। पति ने कहा कि नवंबर 2010 से दिसंबर 2010 के बीच, साथ ही अगस्त 2016 से दिसंबर 2016 के बीच उनके बीच कई फोन कॉल हुए, जिन्हें उन्होंने रिकॉर्ड करके मोबाइल फोन के मेमोरी कार्ड/चिप में सेव कर लिया। पति ने उन रिकॉर्ड की गई बातचीत के ट्रांसक्रिप्ट भी तैयार किए।

जानें- सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने 14 जुलाई, 2025 के निर्णय (2025 आईएनएससी 829) में कहा कि- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के अनुसार, कानून विपरीत पक्ष की सहमति के बिना वैवाहिक संचार के प्रकटीकरण को रोकता है, सिवाय पति और पत्नी के बीच कानूनी कार्यवाही के या जहां एक पर दूसरे के खिलाफ अपराध के लिए मुकदमा चलाया जाता है।

आपको बता दें कि- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- धारा 122 के तहत अपवाद की व्याख्या निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के आलोक में की जानी चाहिए, जो संविधान के अनुच्छेद 21 का भी एक पहलू है। वहीं, इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट ने माना कि इस मामले में निजता का कोई उल्लंघन नहीं हुआ और यह भी कहा कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 ऐसे किसी अधिकार को मान्यता नहीं देती।

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