उमाकांत त्रिपाठी।Punishment In Extra Marital Affair: भारतीय समाज में विवाह को पवित्र रिश्ता माना जाता है और पति-पत्नी के बीच विश्वास इसकी सबसे बड़ी नींव है, लेकिन जब यही विश्वास टूटता है और रिश्ता एक्स्ट्रा मैरिटल की ओर बढ़ता है, तो सवाल उठता है कि क्या ऐसे मामलों में कानून किसी तरह की सजा देता है? क्या पति या पत्नी को अदालत से न्याय मिल सकता है? चलिए जानें.
जानें- ऐसे मामले में क्या है स्थिति?
भारत की सर्वोच्च अदालत ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के सवाल पर 2018 में ऐतिहासिक फैसला दिया था, जिसने इस विषय को हमेशा के लिए नया रूप दे दिया. 2018 में जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 497 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इससे पहले एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध माना जाता था और दोषी को सजा हो सकती थी. लेकिन इस फैसले के बाद अब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध नहीं माना जाता है. यानी यदि पति या पत्नी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है तो उसे लेकर गिरफ्तारी या जेल जैसी कोई कार्रवाई नहीं होगी.
सिविल कानून में क्या हैं परिणाम?
हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के लिए कोई कानूनी परिणाम नहीं होते हैं. भारत में यह तलाक का एक वैध आधार माना जाता है. हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13(1)(i) के तहत पति या पत्नी किसी भी पक्ष के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.
जानिए- हर्जाना और गुजारा भत्ता
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में यह भी स्पष्ट किया कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर से यदि किसी को नुकसान पहुंचता है, तो वह अदालत में जाकर हर्जाने की मांग कर सकता है. यानी अगर एक पार्टनर को दूसरे के अफेयर के कारण मानसिक या सामाजिक क्षति होती है, तो वह आर्थिक मुआवजा मांग सकता है.
इसके अलावा, अगर पत्नी आर्थिक रूप से कमजोर है तो भी अगर पति ने यह साबित कर दिया है कि पत्नी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में है, तो भी अदालत पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार कर सकती है. इसी तरह, अगर पत्नी साबित कर दे कि पति का किसी और के साथ अफेयर है, तो यह भी तलाक और गुजारे की मांग का आधार बन सकता है.